अकबर की महानता का गुणगान तो कही इतिहास कारो ने दिया है , लेकिन अकबर की नीच हरकतो का वर्णन बहुत कम इतिहासकारो ने दिया है |
हर वर्ष अकबर अपने गंदे इरादो से दिल्ली में नौरोज का मेला आयोजित करता था , जिस मेले में पुरुषो के आने पर प्रवेश निषेध था । सिर्फ महिलाओ के लिए मेला रचता था , और खुद महिलाओ के वेश में सुन्दर स्त्रीओ को देखने जाता था | और जो सुन्दर स्त्री पर मोहित होता था उसे चल कपट से दासियो द्वारा अपने महेल कक्ष में बुलाता था |
एक दिन नौरोज के मेले की सजावट देखने महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिह की बेटी किरणदेवी आयी | जिनका विवाह बीकानेर के पृथ्वीराजजी से हुआ था |(Kirandevi) किरणदेवी के रूप को देखकर अकबर मोहित हो गया और अपने आप पर काबू नहीं कर पाया | और अकबरने किरणदेवी को उनकी दासियो के द्वारा अपने महेल कक्ष में बुलाया |
अपने अभिमान और कामना से वश होकर , जैसे ही (Akbar) अकबर ने किरणदेवी को स्पर्श करने की कोशिश की , तब किरणदेवी ने कमर से कटार निकाली ,और अकबर को निचे पटका कर उनकी छाती पर पैर रख कर कटार उसके गर्दन पर लगा दी | और कहा नीच ,,, नराधम तुजे पता नहीं में कौन हु , में उन महाराणा प्रताप की भतीजी हु जिनका नाम सुनते ही तुजे नींद नहीं आती थी । बोल तेरी आखरी इच्छा क्या है |
अकबर को पसीना आ गया और खून सुख गया , उन्हों ने कभी ऐसा नहीं सोचा होगा की आज एक सम्राट राजपूत बाईसा के चरणों मे होगा | जिंदगी के लिए गिड़गिड़ाता हुवा अकबर बोला मुझे माफ़ करदो देवी मुझे आपको पहचानने मे भूल हो गयी | तब किरणदेवी ने कहा तो बोल आज के बाद दिल्ली मे कोई नौरोज का मेला नहीं लगेगा , और किसी भी नारी को परेशान नहीं करेगा |
अकबर ने हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी और वचन दिया की आज के बाद दिल्ली मे कोई नौरोज मेला नहीं लगेगा | ओर मे किसी भी नारी को बुरी नजर से नहीं देखूँगा | उसकेबाद दिल्ली मे कभी भी कोई नौरोज मेला नहीं लगा |
इस घटना का वर्णन गिरधर आसिया द्वारा रासित सगत रासो मे पोस्ट संख्या 632 मे दिया गया है | जो आज भी बीकानेर के संग्रालय मे पेंटिंग लगी है जिसमे दुहा के माध्यम से बताया गया है की