महात्मा की ये 10 बाते मानलों ,आप कभी दुखी नहीं होंगे

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mahatma ki 10 bate motivation story
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बहोत समय पहले की बात है , एक महात्मा किसी स्थान पर पर्णकुटीर बनाकर निवेश करते थे |

महात्मा परम दयालु शीलवान और निसप्राहि थे , महात्मा एकाग्रता के साथ ध्यान करते थे और भगवान् का भजन करते थे | तो दूसरी और अपने पास आये हुए दुखी लोगो के दुःख के निवारण भी अवश्य करते थे |

महात्माके सद्गुणों और सेवाकार्य से भगवान् बहुत प्रसन्न हुए | और भगवान् ने महात्माको वरदान देने , एक देवदूत को धरती पर भेजा | महात्माने देवदूत का ह्रदय से सत्कार किया , और देवदूत से आने का कारण पूछा |

देवदूतने महात्मासे कहा की हे महात्मा भगवान् आपकी भक्ति और सेवा कार्य से अति प्रसन्न है | इस लिए वे आपको वरदान में कोई दिव्य शक्ति देना चाहते है | उन्होंने मुझे आपके पास यह कहने के लिए भेजा है की , क्या आप लोगो की रोग मुक्त करनेकी शक्ति प्राप्त करना चाहेंगे |

महात्माने विनम्र उत्तर दिया , की हे देव भगवान मुज पर प्रसन्न है यही मेरे लिए सबसे बड़ा वरदान है | मुझे कोई दिव्य शक्ति नहीं चाहिए में , परमेश्वर के विधान में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहता हु |

जब महात्माने रोग मुक्त शक्ति लेने से मना कर दिया , तो देवदूत ने कहा की तो आप दुष्टोंको सदमार्ग पर लाने की शक्ति ग्रहण करे | महात्माने पुनः विनम्रता से मना करते हुए कहा की , पापीओ को सदमार्ग पे लाना आप जैसे देवदूत का काम है | देवदूत बड़े आतचर्य में पड़ गए , की क्यों महात्मा ने इन शक्तिओं को लेने से मना कर दिया |

देवदूत महात्माकी भक्ति भावना और अनाशक्ति से बड़े प्रसन्न हुए | उन्होंने महात्मासे कहा हे महात्मा आपने तो मुझे बड़े संकट में डाल दिया है , ईश्वर की आज्ञा अनुसार में आपको कोई शक्ति दिए बिना स्वर्ग नहीं लोट शकता , कृपया आप कोई शक्ति अवश्य स्वीकार कीजिये |

महात्मा कुछ देर तक विचारमंद रहे , फिर उन्होंने देवदुत से कहा ठीक है अगर आप मुझे शक्ति देना ही चाहते है , तो ये वरदान दीजिये की भगवान जो भी मुझसे शुभ कर्म करवाना चाहते है , वे शुभ कर्म होते चले जाए |

में जहा से भी गुजरू वहा लोग रोग मुक्त हो जाए | देवदूत ने कहा तथास्तु ऐसाही हो और उसने महात्माकी परछाई को रोगमुक्त करनेकी शक्ति से संपन्न करदिया | फिर देवदूत वहासे चले गए |

ईधर महात्मा जहा भी जाते , वहा लोग स्वस्त और रोगमुक्त हो जाते | ना तो महात्माको ये पता चला और नाही लोगो को ये पता चलपाया की कैसे लोगो के रोग और कस्ट दूर हो जाते थे | महात्माको कभी बौद्ध नही हो पाया की वो ईश्वर के कितने करीब थे , सेवा तभी कहेलाती है जब सेवा करने वाले मनुष्यके मन में जराभी अभिमान ना रहे |

एक मशहूर कहावत है की दान करो तो ऐसे करो की अपने दूसरे हाथकोभी पता ना चले | क्युकी अभिमानी रहते सेवा संभव नही है , जो सेवा के बदले नाम की चाहत रखता है वे कभी सेवा के पात्र नही होते |

क्युकी क्रतग्यताका गुण प्रत्येक मनुष्यमे होता नही है | और प्रशंसा ना मिलने पर वो सेवा कार्य छोड़ देता है , सहानुभूति दया और उदारता के बिना सेवा संभव नहीं है |

क्युकी एक पेड़ की पहेचान उनके फल से होती है | और मनुष्य की पहेचान उनके कर्मो से , महात्मा के ये बात से हमें ये बोध लेना चाहिए की सेवा कार्य करो तो निस्वार्थ करो फल की चिंता न करो |

 

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